जुलाई 2025 की पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा का महापर्व, जानें तिथि, मुहूर्त और संपूर्ण पूजा विधि
नई दिल्ली: हिंदू पंचांग में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। हर माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा होती है, जो चंद्रमा की पूर्णता का प्रतीक है। जुलाई 2025 में आने वाली पूर्णिमा का महत्व और भी अधिक है क्योंकि यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा है, जिसे गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के रूप में पूरे भारत में बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा को समर्पित है और इस दिन अपने गुरुओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
साल 2025 में आषाढ़ मास की पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरुवार, 10 जुलाई को मनाया जाएगा। यह दिन ज्ञान और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
- पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 10 जुलाई 2025, गुरुवार को प्रातः 01 बजकर 36 मिनट से।
- पूर्णिमा तिथि का समापन: 11 जुलाई 2025, शुक्रवार को प्रातः 02 बजकर 06 मिनट पर।
हिंदू धर्म में उदया तिथि को अधिक महत्व दिया जाता है, इसलिए गुरु पूर्णिमा का व्रत, पूजन और अन्य सभी धार्मिक कार्य 10 जुलाई को ही संपन्न किए जाएंगे।
गुरु पूर्णिमा का महत्व: क्यों है यह दिन इतना खास?
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी और वेदों का विस्तार किया था। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण ही इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का महापर्व है। गुरु हमारे जीवन से अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। वे हमें सही और गलत का भेद बताते हैं और जीवन को एक नई दिशा देते हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान दर्जा दिया गया है।
गुरु पूर्णिमा की संपूर्ण पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन की गई पूजा और व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन निम्नलिखित विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए:
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पवित्र स्नान: गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
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व्रत का संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर गुरु पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें।
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सूर्य देव को अर्घ्य: तांबे के लोटे में जल, रोली, अक्षत और लाल पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
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गुरु पूजन: इस दिन अपने गुरु का पूजन करने का विशेष विधान है। यदि आपके गुरु आपके समीप हैं, तो उनके चरण धोकर उनका पूजन करें, उन्हें नए वस्त्र, फल, फूल और दक्षिणा अर्पित कर उनका आशीर्वाद लें। यदि गुरु समीप नहीं हैं, तो उनकी तस्वीर या चरण पादुका का पूजन करें।
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भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा: गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। पूजा स्थान पर उनकी प्रतिमा स्थापित करें, उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, और पीले मिष्ठान का भोग लगाएं। इस दिन सत्यनारायण की कथा का पाठ करना भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
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मंत्र जाप: पूजा के दौरान अपने गुरु के मंत्र का जाप करें। इसके अलावा "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" मंत्र का जाप करना भी शुभ फलदायी होता है।
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दान-पुण्य: गुरु पूर्णिमा के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार पीली वस्तुओं जैसे चने की दाल, पीले वस्त्र, गुड़, और अध्ययन सामग्री का दान करना चाहिए। इससे कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत होती है।
क्या करें और क्या न करें?
- इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- घर में शांति का माहौल बनाए रखें और किसी से वाद-विवाद न करें।
- इस दिन बाल और नाखून काटना अशुभ माना जाता है।
- अपने गुरु और बड़ों का अपमान भूलकर भी न करें।
गुरु पूर्णिमा का यह पावन पर्व हमें अपने जीवन में गुरु के महत्व को समझने और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन सच्ची श्रद्धा से की गई पूजा-अर्चना से जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान का संचार होता है।
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